Thursday, 21 February 2013

नारी सम्मान से दिल्ली अभी दूर है...


नारी यह शब्द मन में आते ही कुछ अलग संवेदनाये ह्रदय को छु जाती हैI सम्मान तथा समर्पण के भाव स्वत: ही उजागर होते है I कन्या, युवती, स्त्री तथा माँ; इन चार चरणों से होते हुए नारी पूर्णता की और निरंतर अग्रसर होती है I “कन्यावस्था से ही अपनी मुस्कान से सैकड़ो रिश्तो में प्रथम पदार्पण करने का उत्साह और संकल्प लिए होती है नारी I “
हमारे देश में जहा नारी को इतने सम्मान व पूजनीय दृष्टि से देखा जाता है वहा कुछ कटु घटनाये और ह्रदय विदारक हादसे आत्मचिंतन को विवश करते है I अलग-अलग परवेश में पले बढे बुध्हिजीवी अपनी-अपनी मानसिकता से स्थिति का अवलोकन कर मुक्त होने का प्रयास करते दिखाई पड़ते है I सरकार, समाज, संस्कार, राज्य,पश्मिकरण,आधुनिकता तथा फिल्मो से लेकर ग्रहों, तारो और नक्षत्रो तक को नारी के साथ होने वाले अत्याचारों का दोषी बताया जाता है I
यह दोषारोपण नहीं अपितु सामाजिक चिंतन का विषय है की – क्या कठोर कानून बनाने से, दोषियों को जल्द व कड़ी सजा देने से समस्या का समाधान खोज जा सकता है ? इतिहास इस बात का प्रमाण देता है की केवल सजा के प्रावधान व कठोरता से अपराधो पर नियंत्रण करना संभव नहीं है I यदि ऐसा होता तो सऊदी अरब नारी सम्मान व प्रतिष्ठा में सर्वोपरि होता I इसके विपरीत पश्चिमी सभ्यता नारी को पुरुषो के समक्ष बराबरी का स्तर तो देती है परन्तु नारी सम्मान से कोसो दूर है I वे एकल माँ परिवार शुन्यता जैसी अनेकाने समस्याओ से जुन्झते दिखाई देते है I
प्राचीन भारतीय सामाजिक व्यवस्था ने नारी को जो स्थान दिया था उसकी कल्पना शायद आज का कोई भी समाज स्वप्न ही कल्पना कर सकता है I आज की सामाजिक व्यवस्था पुरुषो व स्त्रियों को समदृष्टि से देखने के लिए प्रेरित एवं प्रोत्साहित करती है I जो कार्य मुख्यत: पुरुषो द्वारा किये जाते है उन कार्यो को स्त्रियों द्वारा भी करना अपेक्षित किया जाने लगा है I “लड़का लड़की एक समान” जैसे नारे आम है I जिस प्रकार सागर की तुलना सागर से, आकाश की आकाश से तथा राम-रावण युद्ध की तुलना केवल राम-रावण युद्ध से ही की जा सकती है, ठीक उसी प्रकार नारी की भी तुलना केवल उसके स्त्रीत्व से ही की जा सकती है; अर्थात अतुल्निय है I आज यही सामाजिक तुलनात्मकता की भावना नारी पर अतरिक्त दबाव बना रही है I
नारी प्राकृतिक रूप से अधिक संवेदनशील, सहनशील द्रध्निश्चयि,साहसी तथा कर्मठ है I हमारे यहाँ ऐसे अनेक उदाहरण है जो इस बात के साक्षी है I दशरथ तथा कैकई का एक साथ युद्ध लड़ना व रण भूमि में साथ होना इसी परंपरा की पुष्टि करता है I आदि काल से नारी पुरुषो से कम नहीं अपितु समाज को गढ़ने वाली विशाल शक्ति है I नारी ने भोजन पकाने, खेतो में काम करने, परिवार जोड़ने से लेकर, युद्धों तक में निरंतर अपना योगदान दिया है I आज की नारी का अपने इस गौरवशाली अतीत पर गौरवान्वित होना स्वाभाविक ही हैI भारतीय समाज ने जब से अपने गौरवपूर्ण अतीत व अपने संस्कारो को त्यागा है लगभग तभी से दहेज़,सती,कन्याभ्रूण हत्या, प्रताड़ना जैसे कुरीतियों ने हमारे सामाजिक पतन को गति दी है I
भारतीय समाज अनादिकाल से मर्यादाओ के लिए जाना जाता रहा है I प्राचीन व्यवस्था में अपमान करने का भी एक स्याम व नियम था, अपमान जनक शब्द भी कही ना कही मनुष्यता की मर्यादा में बंधे थे I आज हम चाहे किसी भी धर्म, जाती व भाषा के क्यूँ न हो, एक दुसरे की माताओ और बहनों को अशोभनिय शब्दों के वाणों से घायल कर स्वत: को गौरवान्वित महसूस करते है I पाठ्शालाओ से लेकर कार्यालयों तक; तरुणों से लेकर वृदो तक सहजता से एक दुसरे की माँ बहनों का शाब्दिक तिरस्कार करना साधारण बात हो गयी है, कुछ लोग तो इसे शक्ति प्रदर्शन का एक साधन मानते है I दो लोगो के बीच कोई छोटी झड़प ही क्यूँ न हो; होती अपमानित नारी ही है I बलात्कार की कुछ घटनाये यदि हमे झंकझोडती है तो चहु दिशो में जो शाब्दिक बलात्कार होता है उसपर हमारी अनातारात्मा क्यूँ नहीं झंकझोडती ?
हमे आज से ठान लेना चाहिये की प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में भी कभी किसी नारी का ना अपमान सहेंगे और ना ही करेंगे I हमारे समक्ष कभी भी किसी माता या बहन का शाब्दिक तिरस्कार भी होता है तो उसी पल विरोध मुखर करेंगे I हमे हमारी माँ, बहनों का सम्मान क़ानूनी किताबो में नहीं वरन अपने ही मन में खोजना होगा I जिस दिन वह हमने खोज लिया; उस दिन निश्चय ही अपने गौरवान्वित स्थान को स्वत: प्राप्त कर लेगी, नारी   I